सरस्वती योग
जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, जिस जातक की
कुंडली में यह योग होगा, उसे माँ सरस्वती की कृपा प्राप्त होगी. हमारी वैदिक
संस्कृति में कहा गया है की, यह हमें विद्या बुद्धि प्रदान करती है.
अपूर्वः कोऽपि कोशोड्यं विद्यते
तव भारति ।
व्ययतो वृद्धि मायाति क्षयमायाति सञ्चयात् ॥
व्ययतो वृद्धि मायाति क्षयमायाति सञ्चयात् ॥
अर्थात हे सरस्वती ! विद्द्यारूपी आपका
खज़ाना विचित्र वा अपूर्व ( जो पहले कभी नहीं देखा गया हो ) है जो खर्च करने से वह
बढता है,
और संचय कर रखने से
नष्ट हो जाता है।
सरस्वती योग में जन्म
लेने वाले जातक के विषय में ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है —
“धीमान नाटकगद्यपद्यगणना-अलंकार शास्त्रेयष्वयं |
निष्णात: कविताप्रबंधनरचनाशास्त्राय पारंगत:||
“धीमान नाटकगद्यपद्यगणना-अलंकार शास्त्रेयष्वयं |
निष्णात: कविताप्रबंधनरचनाशास्त्राय पारंगत:||
कीर्त्याकान्त जगत त्रयोऽतिधनिको
दारात्मजैविन्त: |
स्यात सारस्वतयोगजो नृपवरै : संपूजितो भाग्यवान “||
स्यात सारस्वतयोगजो नृपवरै : संपूजितो भाग्यवान “||
अर्थात्- जिस जातक का जन्म सरस्वती योग में
हुआ है वह बुद्धिमान, नाटक,गद्य, पद्य, अलंकार शास्त्र में कुशल, काव्य आदि की रचना करने में सिद्धस्त होता
है उसकी कीर्ति सम्पूर्ण संसार में होती है, वह भाग्यवान और सरकार द्वारा सम्मानित होता
है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में सरस्वती योग तभी
बनता है जब शुक्र, बृहस्पति
और बुध ग्रह एक साथ बैठे हों अथवा एक दूसरे से केंद्र ( प्रथम,चतुर्थ, सप्तम तथा दशम भाव ) त्रिकोण या
द्वितीय भाव में बैठकर संबंध बना रहे हों तो सरस्वती योग बनता है। यदि उक्त तीनों
स्थिति में ग्रहों की आपस में युति अथवा दृष्टि संबंध है तब भी यह योग बनता है।
यदि बृहस्पति, शुक्र या बुध में से कोई एक या दो या तीनो उच्च का ,स्वराशिगत या मित्र राशि में हो तो सरस्वती योग अधिक फलीभूत होता हैं ।
यदि चंद्रमा के घर में गुरु और गुरु के घर चंद्रमा में तथा चंद्रमा पर गुरु की दृष्टि भी हो तो सरस्वती योग निर्मित होता हैं कुंडली में यह स्थिति तभी उत्पन्न होता है जब कर्क राशि का स्वामी चन्द्रमा और मीन राशि का स्वामी गुरु की परस्पर परिवर्तन योग हो।
यदि बृहस्पति, शुक्र या बुध में से कोई एक या दो या तीनो उच्च का ,स्वराशिगत या मित्र राशि में हो तो सरस्वती योग अधिक फलीभूत होता हैं ।
यदि चंद्रमा के घर में गुरु और गुरु के घर चंद्रमा में तथा चंद्रमा पर गुरु की दृष्टि भी हो तो सरस्वती योग निर्मित होता हैं कुंडली में यह स्थिति तभी उत्पन्न होता है जब कर्क राशि का स्वामी चन्द्रमा और मीन राशि का स्वामी गुरु की परस्पर परिवर्तन योग हो।
यहाँ दो महापुरुषों की कुंडलियों के माध्यम से सरस्वती
योग का उदहारण प्रस्तुत है .
भारत के प्रथम नोबेल पुरुस्कार विजेता रबिन्द्र नाथ
टैगोर को कौन नहीं जनता, उनकी कवितायेँ आज भी जन मानस के स्मृति पटल पर अंकित है.
उनकी मीन लग्न की कुंडली में लग्न में स्थित चन्द्रमा
पंचम भाव में स्थित गुरु से राशि परिवर्तन कर रहा है, यह एक सरस्वती योग है.
द्वितीय भाव अर्थात वाणी के भाव में स्थित बुध शुक्र की युति पंचम भाव में स्थित
गुरु से चतुर्थ-दशम स्थान या केंद्र में स्थित है, यह दूसरा सरस्वती योग है. ज्ञान
के भाव में गुरु विराजमान होकर टैगोर को अभूतपूर्व ज्ञान देता है, वाणी के भाव में
सूर्य, बुध, और शुक्र की युति, उन्हें ओजस्वी वाणी प्रदान करती है. दूसरी कुंडली
स्वामी विवेकानंद की है. स्वामी जी का शिकागो में दिया हुआ भाषण आज भी याद किया
जाता है. धनु लग्न में जन्मे स्वामी विवेकानंद की कुंडली के वाणी के भाव में बुध
और शुक्र की युति है, जो उनकी वाणी को बहुत ही प्रभावशाली बनाती है. शुक्र –बुध की
युति से गुरु का 10 और 4 (केंद्र) का सम्बन्ध है, जो की सरस्वती योग का निर्माण
करती है. स्वामी जी की कुंडली के दशम भाव में शनि और चन्द्र की युति है, जो की विष
योग का निर्माण करती है, दशम भाव पिता का भाव होता है, बचपन में ही उनके पिता की
मृत्यु हो गयी थी. कुछ ज्योतिष विद्वानों का मत है, विषयोग अपने दुष्प्रभाव के
साथ, रचनात्मक शक्ति भी प्रदान करता है. दशम भाव और द्वितीय भाव में मध्य बुध और
शनि का राशि परिवर्तन है, जो की सिद्ध करती है, स्वामी जी की वाणी में उनकी अनुपम
रचनात्मक शक्ति प्रस्फुटित होती थी.
B good
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