नेता जी सुभाष चन्द्र बोस: जन्मकुंडली के विचित्र तथ्य
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की कुंडली का अवलोकन

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को दोपहर 12 बजकर 15
मिनट पर कटक (उड़ीसा) में हुआ था. उस समय उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र का चौथा चरण चल
रहा था. उनका जन्म मेष लग्न में हुआ था. उनकी चन्द्र राशि कन्या थी.
विद्या के भाव पंचम में गुरु सिंह राशी में स्थित है. यह जातक को बहुत
विद्वान बनाता है. नेता जी सुभाष बचपन से ही बहुत कुशाग्र बुद्धि के थे. पंचम में
स्थित गुरु की पंचम दृष्टि नवम भाव स्वयं के भाव अर्थात धर्म के भाव पर पड़ रही है.
नेताजी का बचपन से आध्यात्मिक विषयों के प्रति रुझान था. वह रामकृष्ण परमहंस और
स्वामी विवेकानंद के विचारों से बहुत
प्रभावित थे. गुरु की नौवी दृष्टि लग्न पर पड़ने से वह आध्यत्मिक प्रवृत्ति के थे.
गुरु की दृष्टि के कारण ऐसा जातक हमेशा सन्मार्ग पर चलता है. वह अन्याय कभी सहन
नहीं करते थे. चूँकि मेष लग्न का स्वामी
मंगल है, और ऐसा जातक स्वभाव से बहुत साहसी होता है. 1911 में जब मंगल की महादशा
चल रही थी, उस समय एक अंग्रेज प्रोफेसर ने उनके साथी के साथ अभद्रता की थी,
उन्होंने उस अंग्रेज प्रोफेसर को खूब पीटा था.
नेता जी की कुंडली के दशम भाव में सूर्य-बुध-राहू की युति है. एक तरफ यह
बुधादित्य राजयोग बनाती है, दूसरी तरफ सूर्य-राहू का ग्रहण पित्रदोष भी उत्पन्न कर
रहा है. अष्टम में स्थित शनि की तीसरी दृष्टि सूर्य पर है. सूर्य स्वयं शनि के भाव
में स्थित है. सूर्य और शनि परस्पर शत्रु है. दशम भाव कर्म और पिता दोनों का होता
है. सूर्य-राहू का पित्रदोष और उस पर शनि की दृष्टि. यहाँ बहुत ही अजीब सी स्थिति
पैदा हो रही है. पिता के अनुरूप कर्म क्षेत्र चुनने के बाद भी नेता जी का अपने
पिता से वैचारिक मतभेद था.
नेताजी सुभाषचंद्र के पिताजी श्री जानकीनाथ बोस चाहते थे, उनका बेटा
ICS (Indian Civil Service) में अपना भविष्य बनाये, उन्होंने नेता जी को चुनौती भी
दी थी की वह अंग्रेजों की प्रतिभा का सामना नहीं कर सकते. नेताजी ने अपने पिता की
चुनौती को स्वीकार करते हुए ICS परीक्षा की कठिन तैयारी की, और उसमे सफल होकर चौथा
स्थान प्राप्त किया. उस समय राहू की महादशा में गुरु की अन्तर्दशा फिर राहू की महादशा में शनि की अन्तर्दशा प्रारंभ
हुई.
1920 में, ICS परीक्षा में सफल होने के बाद भी, ब्रिटिश शासन की दासता
स्वीकार ना करते हुए, अपने अंतःकरण के मार्ग पर चलते हुए ( राहू-गुरु) ICS के पद
से इस्तीफा दे दिया. इससे पिता-पुत्र में वैचारिक मतभेद और बढ़ गया (राहू-शनि).
1934 से 1937 के मध्य जब गुरु की महादशा थी, तब उनकी मुलाकात एमिली से
हुई, और 1937 में दोनों विवाह के बंधन में बांध गए. नवम्बर 1943 में एक पुत्री का
जन्म हुआ, उस समय गुरु की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा, और राहू की प्रत्यंतर
दशा थी. पंचमेश सूर्य संतान का कारक था.
लेकिन इसके बाद भी पितृ दोष का प्रभाव नेताजी के वंश पर देखा गया. नेताजी के वंश में फिर वृध्दि नहीं
हुई. उनकी पत्नी एमिली कभी भारत नहीं आई. उनकी पीढ़ी इतिहास से विस्मृत हो गयी.
18 अगस्त 1945 के समय गुरु की महादशा में चन्द्र की अन्तर्दशा और
शुक्र की प्रत्यंतर दशा थी. यह तो भाग्योदय की दशा थी, इसमें नेता जी को कोई बड़ा
लाभ मिलने वाला था. सिर्फ शुक्र की प्रत्यंतर के अलावा कोई मारकेश की दशा भी नहीं
थी. सिर्फ मारकेश के प्रत्यंतर होने से उनकी तथा कथित विमान दुर्घटना में मृत्यु
को नकारा जा सकता है. दूसरा अष्टम भावस्थ शनि जातक को दीर्घायु बनाता है. अतः कुल
मिला कर यह कहा जा सकता है की, नेताजी की कुंडली में अकाल मृत्यु का योग नहीं था.
वह निश्चित रूप से अज्ञातवास में रहे थे.
राजीव कुमार
Comments
Post a Comment